Friday, September 7, 2012

Soch

//** सोच **//

मेरी सोच की राह इतनी गहरी है ,
इतनी कच्ची है ।
कि हरदम गिरता हूँ ,
हरदम फिसलता हूँ।
पर गिरकर उठता हूँ,
बहुत कुछ सीखता हूँ ।

सोच में पागलपन है ।
सठिया सा मेरा मन है।
सोच में प्यार है,
प्रिये संग गूंठे मीठे लम्हों का प्यार है।
सोच में क्रोध है,
अन्याय का विरोध है ।
सोच एक विचार की नयी धारा है,
अमीर के व्यक्तित्व , गरीब के रोटी का सहारा है।

रूह को जोड़े ये शारीर से।
आभास कराये खुद का करीब से।
हूँ में दीवाना इसकी ताकत का ,
अजूबे ये कराये बड़े अजीब से।

पल में इसने माँ के पास पहुचाया है।
बाप के थप्पड़ का एहसास दिलाया है।
हर वक़्त , भविष्य का विचार , कल की यादें ,
सब इसी के संग दोहराया है।

दुनिया सोच से ही पहचाने।
हर कोई सोच की बात माने।
आमिर-गरीब , सच- झूठ , बुरा - भला ,
इस बिना कोई न जाने ।

सोच की दौड़ , उसकी चाल,
किसी को न है खबर।
एक समय धरती पर हूँ,
दुसरे पल अम्बर ।
ये इंसान को राक्षस से अलग बनाये।
कोई इसे हमसे छीन  न पाए।
महान  पुरुष के शारीर तोह नश्वर है।
पर उनकी सोच मर न पाए।

सोच एक सपना है,
जो सिर्फ और सिर्फ अपना है।

//** END **//

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